रविवार, 10 मई 2020

क्या सच मे पंडितों ने किसी का भी शोषण किया है आए जाने सच क्या है और झूठ क्या? इतिहास के माध्यम से

१००% सत्य कभी भी पढ़ लेना इतिहास में
*लगभग 326 ईसा पूर्व विष्णुगुप्त (द्वितीय चाणक्य) के पिता चाणक्य को राजा के गलत कार्यो  विरोधभास करने पर कारागृह में डाल दिया गया था उस समय जिन्हें सारा विश्व अब चाणक्य के नाम से जानता है जोकि विष्णुगुप्त अर्थात द्वितीय चाणक्य मात्र 13 या 14 वर्ष के होंगे । चाणक्य (विष्णुगुप्त के पिता) जब नही माने एवं ऐसा माना जाता है कि उन्होंने भूखे रहकर आत्महत्या कर ली कोई बन्दीगृह में कोई उपाय न रहने के कारण।
उनकी यह अफवाह फैला दी कि आज चाणक्य को व महामंत्री सत्तार को निर्वासित (रिहा)कर दिया है।
वही जिस दिन चाणक्य को गिरफ्तार किया था उसी दिन विष्णुगुप्त ने अपनी मां से कह दिया था कि मेरे पिता मर चुके हैं मैं आपको झूठा आश्वाशन नही देना चाहता और घर छोड़कर चल दिए पाटलिपुत्र में ही लेकिन अगले ही दिन जब भिक्षा मांगने विष्णुगुप्त अपने चार घरों पर पहुंचा तो सभी माताओं ने भिक्षा देने का प्रयास किया तो उनके पतियों ने यह कहकर मना कर दिया कि  राष्ट्रद्रोही के पुत्र को भिक्षा देकर हमे दोषी नही बनना, हमे अपराधी नही बनना और जैसा कि आप जानते हैं प्राचीन समय से ही देव अर्थात पंडितजी एक दिन में मात्र पांच घरों में ही भिक्षा मांगते थे चाहे भिक्षा मिले या न मिले तो फिर पांचवे घर विष्णुगुप्त जी अपने स्वयं के घर ही भिक्षा लेने पहुँचे संयोग से और उनकी माताजी ने जो मात्र आधा कटोरा आटा बचा था वही अपने पुत्र की लालसा में दे दिया और निश्चित है जब घर मे आटा बचा ही नहीं तो विष्णुगुप्त की माताजी भूखी रही होगी 😢। भिक्षा लेकर विष्णुगुप्त(द्वितीय चाणक्य) अपने राह चले गए। किन्तु एक दो दिन के पश्चात जब विष्णुगुप्त जी अपनी माताजी की मृत्यु का सन्देश प्राप्त हुआ किसी न किसी सूत्र से अपनी माताजी का अंतिम संस्कार करके पाटलिपुत्र से बाहर जाने का विचार उन्हें सताने लगा तब उन्हें  धनश्रेस्ठि/ धनट्रेष्टि मिले और उन्हें तक्षशिला तक जाने में मदद की।
अब कथा को थोड़ा आगे ले जाता हूँ क्योंकि लेख का अर्थ चाणक्य जीवन परिचय बताने का नही बल्कि जो लोग ब्राह्मणों पर वर्तमान में भी यह आरोप लगाते हैं कि ब्राह्मणों ने उनका शोषण किया है उन्हें यह बताना है कि एक शोषित वर्ग खुद कैसे दूसरे को शोषित कर सकता है व कब किया है।
तो कथा पर चलते हैं .. जब अलक्षेन्द्र विश्व विजय पर निकला तब उन्हें यह पीड़ा सताने लगी कि अखंड भारत अब कैसे बचेगा उसका गौरव कैसे बचा रहेगा । वो जगह जगह सभी जनपदों व राजाओं के पास पहुंचा पाटलिपुत्र भी गए जहाँ उनका मदद मांगने पर घोर अपमान किया गया जो एक आम आदमी का किया जा सकता है। इससे पहले भी वो अपमानित किए गए जब एक दिन पाटलिपुत्र में सभी देवों की प्रतियोगिता हुई थी तब उन्हें सत्य जवाब देने पर पीड़ित व अपमानित किया था।
तब भारत देश के भिन्न भिन्न राजा यमन से उनकी मदद न करने के कारण अपना अपना राज्य हार गए थे ।
कथा को और आगे ले चलते हैं एक समय जब तक्षशिला से पूरे विश्व मे ज्ञान की ख्याति प्राप्त करके अपने क्षेत्र पाटलिपुत्र का वो हिसाब पूरा करने के लिए नीतिबद्ध तरीके से आए तो उन्होंने केवल एक गुरुकुल विद्यापीठ की भूमि की मांग रखी जोकि उन्हें सारी प्रजा ,सारे मंत्री महामंत्री अमात्य, सभी शिक्षा पाने के इच्छुक की इच्छा ताक पर रखकर वह भी देने से मना कर दिया और फिर से खदेड़ने का आदेश,मार देने का आदेश, बंदी बनाने का आदेश  दे दिया ।

अब आप ही उन्हें भटके हुए लोगो को समझाए की भई ब्राह्मणों ने आपका शोषण कैसे कर दिया, कब कर दिया ?

अब 19 वी सदी में अंग्रेज़ो ने कराया वो बताते हैं।
*जातीयता बढ़ाने की गहरी साज़िश*🧐

*"हजारों साल से शूद्र दलित मंदिरों मे पूजा करते आ रहे थे पर अचानक 19वीं शताब्दी मे ऐसा क्या हुआ कि दलितों को 5 साल मंदिरों मे प्रवेश नकार दिया गया?"*

क्या आप सबको इसका सही कारण मालूम है?

*या सिर्फ़ ब्राह्मणों को गाली देकर मन को झूठी तसल्ली दे देते हो?*

पढ़िये, सुबूत के साथ क्या हुआ था उस समय!

अछूतों को मन्दिर में न घुसने देने की सच्चाई क्या है?

*यह काम पुजारी करते थे कि मक्कार अंग्रेज़ों के लूटपाट का षड्यंत्र था?*

*1932 में लोथियन कॅमेटी की रिपोर्ट सौंपते समय डॉ० अंबेडकर ने अछूतों को मन्दिर में न घुसने देने का जो उद्धरण पेश किया है, वह वही लिस्ट है जो अंग्रेज़ों ने कंगाल यानि ग़रीब लोगों की लिस्ट बनाई थी; जो मन्दिर में घुसने देने के लिए अंग्रेज़ों द्वारा लगाये गए टैक्स को देने में असमर्थ थे!*

*षड्यंत्र ..*..

मित्रों,

*1808 ई० में ईस्ट इंडिया कंपनी पुरी के जगन्नाथ मंदिर को अपने क़ब्ज़े में लेती है और फिर लोगों से कर वसूला जाता है, तीर्थ यात्रा के नाम पर!*

*चार ग्रुप बनाए जाते हैं!*
*और चौथा ग्रुप जो कंगाल हैं, उनकी एक लिस्ट जारी की जाती है!*

*1932 ई० में जब डॉ० अंबेडकर अछूतों के बारे में लिखते हैं, तो वे ईस्ट इंडिया के जगन्नाथ पुरी मंदिर के दस्तावेज़ों की लिस्ट को अछूत बनाकर लिखते हैं!*

*भगवान जगन्नाथ के मंदिर की यात्रा को यात्रा-कर में बदलने से ईस्ट इंडिया कंपनी को बेहद मुनाफ़ा हुआ और यह 1809 से 1840 तक निरंतर चला!*

*जिससे अरबों रुपये सीधे अंग्रेज़ों के ख़ज़ाने में बने और इंग्लैंड पहुंचे!*

*श्रृद्धालु यात्रियों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता था!*

प्रथम श्रेणी = *लाल जतरी (उत्तर के धनी यात्री)*

द्वितीय श्रेणी = *निम्न लाल (दक्षिण के धनी यात्री)*

तृतीय श्रेणी = *भुरंग (यात्री जो दो रुपया दे सके)*

चतुर्थ श्रेणी = *पुंज तीर्थ (कंगाल की श्रेणी जिनके पास दो रुपये भी नहीं, तलाशी लेने के बाद)*

चतुर्थ श्रेणी के नाम इस प्रकार हैं!

  *1. लोली या कुस्बी!*
  *2. कुलाल या सोनारी!*
  *3.मछुवा!*
  *4.नामसुंदर या चंडाल*
  *5.घोस्की*
  *6.गजुर*
  *7.बागड़ी*
  *8.जोगी*
  *9.कहार*
*10.राजबंशी*
*11.पीरैली*
*12.चमार*
*13.डोम*
*14.पौन*
*15.टोर*
*16.बनमाली*
*17.हड्डी*

*प्रथम श्रेणी से 10 रुपये!*
*द्वितीय श्रेणी से 6 रुपये!*
*तृतीय श्रेणी से 2 रुपये*
           और
*चतुर्थ श्रेणी से कुछ नहीं!*

*अब जो कंगाल की लिस्ट है, जिन्हें हर जगह रोका जाता था और मंदिर में नहीं घुसने दिया जाता था!*

*आप यदि उस समय 10 रुपये भर सकते तो आप सबसे अच्छे से ट्रीट किये जाओगे!*

*डॉ० अंबेडकर ने अपनी Lothian Commtee Report में इसी लिस्ट का ज़िक्र किया है और कहा कि कंगाल पिछले 100 साल में कंगाल ही रहे ....llll

*बाद में वही कंगाल षडयंत्र के तहत अछूत बनाये गए!*

*हिन्दुओं के सनातन धर्म में छुआछुत बैसिक रूप से कभी था ही नहीं!*

*यदि ऐसा होता तो सभी हिन्दुओं के पिंडदान के घाट अलग अलग होते!*

*और मंदिर भी जातियों के हिसाब से ही बने होते और हरिद्वार में अस्थि विसर्जन भी जातियों के हिसाब से ही होता!*

*ये जातिवाद ईसाई और मुसलमानों में है इन में जातियों और फ़िरक़ों के हिसाब से अलग-अलग चर्च और अलग-अलग मस्जिदें और अलग-अलग क़ब्रिस्तान।*

*हिन्दुओं में जातिवाद, भाषावाद, प्रान्तवाद, धर्मनिपेक्षवाद, जडवाद, कुतरकवाद, गुरुवाद, राजनीतिक पार्टीवाद पिछले 1000 वर्षों से मुस्लिम और अंग्रेज़ी व कॉन्ग्रेसी शासकों ने षडयंत्र से डाला है!*

*षडयंत्रों को समझो हिन्दुओं...।"*
© HARSH SHAMRA
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